AC और DC Current में क्या अंतर है


Electricity यानी विद्युत हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है, विद्युत मशीनों के उपयोग से हम बड़े बड़े कामों को कुछ समय मे ही पूरा कर सकते हैं ।

Current दो प्रकार का होता है -

  (1) Alternating Current (प्रत्यावर्ती धारा)
  (2) Direct Current (दिष्ट धारा)


एसी और डीसी में क्या अंतर होता है

 (1) परिभाषा -

  AC - AC धारा का मान तथा दिशा समय के साथ परिवर्तित होते है ।

  DC - DC धारा का मान तथा दिशा नियत रहते हैं, समय के साथ नहीं बदलते ।



(2) उपयोग -

  AC - आमतौर पर घरों मे उपयोग होने वाली धारा AC होती है जिसका उपयोग हम बल्बों, कूलर, पंखा, TV आदि मे करते हैं ।

 DC - हमारे मोबाइल की बैट्री में DC current होता है इसके अलावा वैल्डिंग में, इलैक्ट्रोप्लेटिंग, बैट्री और सेल में DC करंट होता है ।

(3) उत्पादन -

  AC - प्रत्यावर्ती धारा का उत्पादन आल्टरनेटर के द्वारा किया जाता है ।

  DC - दिष्टधारा का उत्पादन जनित्र (जेनरेटर), डायनमो) से किया जाता है ।

(4) Voltage -

  AC - AC का उत्पादन 33,000 volts तक किया जा सकता है ।

  DC - DC का उत्पादन केवल 650 वोल्ट तक ही किया जा सकता है ।



(5) परिवर्तक -

● AC को DC में परिवर्तित करने वाली युक्ति डायोड (Rectifier) है ।

● DC को AC में परिवर्तित करने वालो युक्ति इन्वर्टर (Inverter) है ।


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AC motor और DC motor में क्या अंतर है

AC motor और DC motor में क्या अंतर है ?

1. करंट :-

● AC motor केवल alternating current ( प्रत्यावर्ती धारा ) पर कार्य करती है
● DC motor केवल Direct current ( दिष्टधारा ) पर कार्य करती है

2. सप्लाई :-

● AC motor में स्टेटर को प्रत्यावर्ती इनपुट सप्लाई से जोड़ा जाता है
● DC motor में स्टेटर और आर्मेचर दोनों को DC इनपुट सप्लाई से जोड़ा जाता है


3. Starting torque :-

● सामान्यतः AC motor का starting torque काम होता है
● सामन्यतः DC मोटर का Starting torque अधिक होता है


4. Size :-


● AC मोटर का आकार कम होता है
● डीसी मोटर का आकार अधिक होता है


5. बैटरी द्वारा चालान :-

● AC मोटर को बैटरी द्वारा सीधे उपयोग नही किया जा सकता क्योंकि बैटरी में दिष्टधारा होती है जबकि AC मोटर केवल प्रत्यावर्ती धारा पर कार्य करती है

● DC मोटर को बैटरी द्वारा सीधे ही उपयोग किया जा सकता है

इसके अलावा AC मोटर और DC मोटर दोनों एक ही सिद्धांत पर कार्य करती हैं ।

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मुक्त इलेक्ट्राॅन और इलेक्ट्रॉन क्या है


इलेक्ट्रॉन किसे कहते है ?

प्रकृति में विभिन्न तरह के पदार्थ पाये जाते हैं, प्रत्येक पदार्थ के गुण तथा संरचना भिन्न होती है ।

प्रत्येक पदार्थ छोटे-छोटे अणु से मिलकर बना होता है ये अणु भी अति सूक्ष्म परमाणु से मिलकर बनता है ।

परमाणु में इलेक्ट्रॉन, प्रोटान और न्यूट्रान पाये जाते हैं परमाणु के केन्द्रीय भाग को नाभिक कहते हैं ।

नाभिक में प्रोटान तथा न्यूट्रान होते हैं तथा इलेक्ट्रान नाभिक के चारों ओर परिक्रमा करते हैं ।

यहां मैं आपको इलेक्ट्रान के बारे में जानकारी दूंगा कि इलेक्ट्रान क्या है ? मुक्त इलेक्ट्रान क्या है ?
इलेक्ट्राॅन किसे कहते हैं ?


इलेक्ट्रान की खोज जे.जे. थामसन ने की थी । इलेक्ट्रान परमाणु में पाया जाता है इसका आवेश -1.6 × 10¯¹⁹ होता है ।

इलेक्ट्रान नाभिक के चारों ओर अपनी कक्षा में परिक्रमा करता रहता है ।

विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन का वितरण परमाणु की किसी कक्षा में इलेक्ट्रान 2n² के अनुसार भरे जाते हैं जहां n उस कक्षा का क्रमांक होता हैं ।

इलेक्ट्रान का द्रव्यमान 9.109 × 10¯³¹ किलोग्राम होता है ।

मुक्त इलेक्ट्रान किसे कहते हैं ?


वे इलेक्ट्रॉन जो परमाणु मे किसी कक्षा मे नही होते बल्कि स्वतंत्र रहते हैं, मुक्त इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं ।
किसी भी पदार्थ में विद्युत धारा प्रवाह मुक्त इलेक्ट्रॉन के द्वारा ही होता है ।

जिस धातु मे मुक्त इलेक्ट्राॅन की संख्या अधिक होती है वह धातु विद्युत की उतनी ही अच्छी सुचालक होती है ।

और जिस पदार्थ में मुक्त इलेक्ट्राॅन नहीं होते वह अचालक पदार्थ होता है अर्थात उसमें विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती ।


ओम का नियम आसान भाषा में

इस नियम का प्रतिपादन सर्वप्रथम जर्मन भौतिकशास्त्री तथा गणितज्ञ जॉर्ज साइमन ओम ने किया था। इसलिए इसे उन्हीं के नाम पर ओम का नियम (ohm’s law) कहते हैं।

ओम का नियम क्या है? (What is Ohm’s Law?)

 ओम का नियम भौतिकी के सबसे महत्वपूर्ण नियमों में से एक है। ओम का नियम एक सूत्र(formula) है जिससे विभवान्तर(Potential or Voltage), धारा(Current) तथा प्रतिरोध(Resistance) के बीच संबंध ज्ञात किया जाता है। Electronics के क्षेत्र में इसकी महता Einstein के सापेक्षता के सिद्धांत से कतई कम नही है।


ओम का नियम – हिंदी में इसकी परिभाषा

 ओम का नियम(Ohm’s law) – यदि भौतिक अवस्थायें जैसे की ताप, लंबाई इत्यादि स्थिर हो, तब किसी विधुत परिपथ में प्रतिरोध के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर(वोल्टेज) उस प्रतिरोध में प्रवाहित होने वाली धारा(flow of current) के समानुपाती होता है।
यानि की V ∝ I
इसको V=IR भी लिख सकते है।

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ट्रांसफार्मर क्या है ? यह किस सिद्धांत पर कार्य करता है -


ट्रांसफार्मर क्या है ?
ट्रांसफार्मर एक ऐसी युक्ति है जो प्रत्यावर्ती धारा (AC Current) के वोल्टेज को कम तथा अधिक कर सकता है तथा एक परिपथ से दूसरे परिपथ में स्थानांतरित कर सकता है, इसे हिन्दी में परिणामित्र कहते है ।

ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत
ट्रांसफार्मर म्यूचुअल इण्डक्टेंस (Mutual Inductance) के सिद्धांत पर कार्य करता है ।

ट्रांसफार्मर की संरचना
ट्रांसफार्मर में दो वाइण्डिंग्स होती है -

● प्राथमिक वाइण्डिंग (Primary Winding)
● द्वितीयक वाइण्डिंग (Secondary Winding)

जो वाइण्डिंग इनपुट विद्युत सप्लाई से संयोजित की जाती है वह प्राइमरी वाइण्डिंग होती है ।
तथा जो वाइण्डिंग लोड से संयोजित होती है वह सेकेंडरी वाइण्डिंग होती है ।

ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते है ?
ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते हैं -

फेज संख्या के आधार पर
● 3 फेज ट्रांसफार्मर
● सिंगल फेज ट्रांसफार्मर

आउटपुट के आधार पर
● Step up ( उच्चाई )
● Step Down ( अपचायी )


कोर (Core) के आधार पर
● शैल प्रकार का
● क्रोड प्रकार का
● बैरी प्रकार का

इसके अलावा ट्रांसफार्मर का वर्गीकरण और भी प्रकार से किया जाता है जैसे - पावर ट्रांसफार्मर तथा डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफार्मर आदि ।

Step Down और Step up ट्रांसफार्मर क्या है ?
Step Down (उच्चायी) -:-
इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में अधिक वोल्टेज की विद्युत ऊर्जा इनपुट की जाती है और आउटपुट के में कम वोल्टेज की विद्युत ऊर्जा प्राप्त होती है ।

Step up (अपचायी) -:-
इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में कम वोल्टेज की विद्युत ऊर्जा इनपुट की जाती है और आउटपुट के में अधिक वोल्टेज की विद्युत ऊर्जा प्राप्त होती है ।

ट्रांसफार्मर कैसे कार्य करता है ?
ट्रांसफार्मर में जब प्राइमरी वाइण्डिंग में विद्युत ऊर्जा प्रवाहित की जाती है तो प्राइमरी वाइण्डिंग के चारों ओर विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है । इस चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव से सेकेंडरी वाइण्डिंग विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है । ट्रांसफार्मर में आउटपुट विद्युत ऊर्जा लगभग समान ही रहती है लेकिन वोल्टेज तथा धारा का मान बदल जाता है ।
अगर ट्रांसफार्मर Step-up है तो वोल्टेज अधिक तथा धारा को जाती है और यदि ट्रांसफार्मर Step Down है तो वोल्टेज कम तथा धारा अधिक हो जाती है ।

क्योंकि P = VI

ट्रांसफार्मर का उपयोग :-
विद्युत उत्पादन केंद्र पर उत्पादित विद्युत शक्ति के पारेषण करने के लिये इसे Step up किया जाता है । क्योंकि अधिक धारा की विद्युत ऊर्जा के लम्बी दूरी तक पारेषण में अधिक ऊर्जा क्षय होता है । इसके अलावा Transformer की दक्षता अधिक होती है ।


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प्रतिरोध और विशिष्ट प्रतिरोध क्या है | परिभाषा | ईकाई


प्रतिरोध क्या है ?

किसी भी पदार्थ मे जब विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वह पदार्थ धारा के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करता है । विद्युत धारा के मार्ग में पदार्थ द्वारा उत्पन्न होने वाले इस अवरोध को प्रतिरोध कहते हैं । प्रत्येक पदार्थ का अपना प्रतिरोध होता है अंतर केवल इतना है कि किसी पदार्थ का प्रतिरोध कम तथा किसी पदार्थ का प्रतिरोध अधिक होता है जो उस पदार्थ का स्वभाविक गुण होता है ।

प्रतिरोध का मात्रक: प्रतिरोध को R से प्रदर्शित करते हैं तथा प्रतिरोध का मात्रक ओह्म Ω है ।

ओह्म के नियम से R = V/I

विशिष्ट प्रतिरोध क्या है ?

यह किसी पदार्थ की लम्बाई के अनुक्रमानुपाती होता है इसका मात्रक ओह्म-सेमी है ।

विशिष्ट प्रतिरोध ρ = RA/l
यहां
R = प्रतिरोध
l = लम्बाई
A = कटाक्ष क्षेत्रफल

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कैपेसिटर क्या है ?

किसी भी इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक परिपथ में कई तरह के अवयव होते हैं जैसे - प्रतिरोध, चालक, संधारित्र, डायोड आदि ।


कंडेनसर क्या होता है ?
कंडेनसर एक ऐसी युक्ति है जिसमे विद्युत आवेश को एकत्रित किया जाता है और किसी चालक की धारिता को बढ़ाया जाता है ।कंडेनसर को कैपेसिटर या संधारित्र भी कहते हैं । कंडेनसर में दो चालक प्लेटों को एक-दूसरे के निकट स्थापित कर दिया जाता है और दोनों प्लेटों के बीच में अचालक पदार्थ जैसे - कागज, माइका आदि को भर दिया जाता है । संधारित्र को किसी विद्युत स्त्रोत से संयोजित करने पर एक प्लेट में धनात्मक आवेश तथा दूसरी प्लेट पर समान मात्रा में ऋणात्मक आवेश आ जाता है । इसके बाद अगर विद्युत स्त्रोत को हटा दिया जाये फिर भी संधारित्र कुछ समय तक आवेशित बना रहता है ।


संधारित्र की धारिता क्या है ?
संधारित्र के विद्युत आवेश एकत्रित करने की क्षमता को संधारित्र की धारिता (C) कहते है, इसका मात्रक फैरड है । संधारित्र की धारिता, संधारित्र में प्लेटों के बीच की दूरी, प्लेटों के क्षेत्रफल, उनके बीच के अचालक पदार्थ आदि पर निर्भर करती है ।

किसी चालक का विभव, उसके आवेश के अनुक्रमानुपाति होता है

Q ∝ V
Q = CV
या C = Q/V


यहां C एक नियतांक है जिसे चालक की धारिता कहते है ।

संधारित्र का संयोजन | Connection of Capacitor

श्रेणी क्रम - श्रेणी क्रम में संधारित्रों की कुल धारिता
1/C = 1/C1 + 1/C2 + 1/C3

समानांतर क्रम - समानांतर क्रम में संधारित्रों की कुल धारिता C = C1 + C2 + C3

Extra tip : किसी विद्युत परिपथ, मशीन आदि में मरम्मत करने से पहले उसमे लगे कैपेसिटर के आवेश को विसर्जित कर देना चाहिए । क्योंकि बड़े कैपेसिटर में अधिक आवेश होता है जिससे भयंकर विद्युत झटका लग सकता है ।
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