Poverty गरीबी


 
गरीबी

गरीबी का अर्थ है वह स्थिति जब किसी व्यक्ति को जीवन की निम्नतम आधारभूत जरूरतें - भोजन, वस्त्र एवं आवास भी उपलब्ध नहीं हो पाते | मनुष्य जब बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति की स्थिति में नहीं होता तब उसे गरीब की श्रेणी में गिना जाता है | विकासशील देशों के संबंध में पहला वैश्विक गरीबी अनुमान वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 1990 ई. में मिलता है | वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट में गरीबी को परिभाषित करते हुए कहा है कि गरीबी निम्नतम जीवन-यापन-स्तर करने की असमर्थता है | यानी जब निम्नतम जीवनयापन-स्तर भी प्राप्त नहीं किया जा सके तब उस स्थिति को गरीबी कहते हैं | सैद्धांतिक रूप में गरीबी की माप करने के लिए सापेक्षिक एवं निरपेक्ष प्रतिमानों का प्रयोग करते हैं |


1. सापेक्ष गरीबी : सापेक्ष गरीबी यह स्पष्ट करती है कि विभिन्न आय वर्गों के बीच कितनी विषमता है | प्राय: इसे मापने की दो विधियाँ हैं - 1 लॉरेंज वक्र 2. गिनी गुणांक |


1. लॉरेंज वक्र : लॉरेंज वक्र को खींचने के लिए X-अक्ष पर परिवारों की संचयी% और Y-अक्ष पर कुल आय का संचयी% लेते हैं | लॉरेंज वक्र शून्य से होकर 100 पर समाप्त होगा | यदि समाज के लोगों की आय समान रूप से वितरित हो यानी X% के पास X% ही आय हो तो उहें प्रदर्शित करने वाली रेखा X-अक्ष के साथ 45 डिग्री का कोण बनाएगी, इसे हम पूर्ण या निरपेक्ष समता रेखा कहते हैं | यदि मापे जाने वाले चर का मूल्य ऋणात्मक नहीं हो सके तो -

(a) लॉरेंज वक्र पूर्ण समता रेखा के ऊपर नहीं उठेगी |

(b) पूर्ण असमानता रेखा के नीचे नहीं जा सकेगी |

(c) बढ़ती हुई उत्तल फलन होगी |



नोट : लॉरेंज वक्र जितनी ही पूर्ण समता रेखा के पास होगी, आय की विषमता उतनी ही कम होगी |” 


2. गिनी गुणांक (G) : गिनी गुणांक आय के वितरण की विषमता की माप की सबसे प्रचलित विधि है | यह लॉरेंज वक्र तथा पूर्ण समता रेखा के बीच का क्षेत्रफल तथा पूर्ण समता रेखा के नीचे के कुल क्षेत्र के बीच का अनुपात होता है |

G = छायांकित क्षेत्रफल (A)/पूर्ण समता रेखा के नीचे का कुल क्षेत्रफल

यदि, G = 0, तो प्रत्येक व्यक्ति को एक ही आय

G = 1, तो एक ही व्यक्ति को पूरी आय

(इसीलिए गिनी गुणांक का अधिकतम मूल्य 1 के बराबर होगा)

गिनी गुणांक में यदि 100 से गुना कर दे तो हमें गिनी सूचकांक प्राप्त होगा |

लॉरेंज वक्र तथा गिनी गुणांक आय की विषमता की माप से संबंधी है, आय की विषमता को प्रतिव्यक्ति आय या कुजनेट्स विषमता वक्र से नहीं मापा जा सकता है |



नोट : लॉरेंज वक्र को 1905 ई. में मैक्स ओलॉरेंज (MaxO, Lorenz) ने एवं गिनी गुणांक को 1912 ई. कोरेडो गिनी (इटली) ने विकसित की |


विषमता समायोजित प्रतिव्यक्ति आय धारणा - इस धारणा का प्रतिपादन नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन ने किया | उन्होंने आय के स्तर तथा उसके वितरण के आयाम को जोड़कर आर्थिक कल्याण की माप के लिए इस धारणा का विकास किया | उनके अनुसार -

W = μ(1-G)

जहाँ W = कल्याण

μ = प्रति व्यक्ति आय

G = विषमता की आय

स्पष्ट है कि कल्याण (W) में वृद्धि होगी यदि प्रति व्यक्ति आय (μ) में वृद्धि हो या विषमता की आय (G) में कमी हो |” 


2. निरपेक्ष गरीबी : निरपेक्ष गरीबी का निर्धारण करते समय मनुष्य की पोषक आवश्यकताओं तथा अनिवार्यताओं के आधार पर आय अथवा उपभोग व्यय के न्यूनतम स्तर को ज्ञात किया जाता है | इसके अंतर्गत हम एक निश्चित मापदंड के आधार पर यह तय करते हैं कि कितने लोग इस मापदंड के नीचे हैं और उन्हें हम गरीब कहते हैं | इस निश्चित मापदंड को हम गरीबी रेखा या निर्धनता रेखा कहते हैं | यानी निर्धारित किये गए न्यूनतम उपभोग व्यय को निर्धनता रेखा कहते हैं | इस न्यूनतम निर्धारित स्तर से कम व्यय करने वाले व्यक्तियों को गरीब कहा जाता है |



नोट : निर्धनता की माप के लिए निरपेक्ष प्रतिमान का सर्वप्रथम प्रयोग खाद्य एवं कृषि संगठन (F.A.O.) के प्रथम महानिदेशक आर. वायड ने 1945 ई. में किया |” 


भारत में निर्धनता

भारत में निर्धनता की माप करने के लिए निरपेक्ष प्रतिमान का प्रयोग किया जाता है | हमारे देश में योजना आयोग द्वारा गरीबी निर्धारण के संबंध में एक वैकल्पिक परिभाषा स्वीकार की जिसमें आहार संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखा गया है | इस अवधारणा के अनुसार उस व्यक्ति को निर्धनता की रेखा से नीचे माना जाता है जो ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन 2,400 कैलोरी व शहरी क्षेत्रों में 2,100 कैलोरी भोजन प्राप्त करने में असमर्थ है | भारत में गरीबी की माप के साथ अनेक अर्थशास्त्रियों के नाम जुड़े हैं, जिनमें प्रमुख है - दांडेकर तथा रथ, बी.एस. मिनहास, पी.डी. ओझा, प्रणव बर्धन, आइ. जे. अहलूवालिया, एस. पी. गुप्त, तेंदुलकर, सी. रंगराजन आदि | इसके अतिरिक्त योजना आयोग एवं वित्त आयोग के माप मिलते हैं |


” भारत में निर्धनता रेखा के निर्धारण का पहला अधिकारिक प्रयास योजना आयोग द्वारा जुलाई, 1962 ई. में किया गया |” 


भारत में गरीबी निर्धारण का इतिहास


  दादा भाई नौरोजी : इनकी पुस्तक 'पावर्टी एंड अनब्रिटिश रुल इन इंडिया’ में पहली बार गरीबी के मापन को (G) की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति से लगाया था |


➤  नीलकांत दांडेकर और वीएम रथ के फॉर्मूले : इनके फॉर्मूले के आधार पर स्वतंत्रता के बाद पहली बार 1971 ई. में वैज्ञानिक तरीके से गरीबी रेखा का निर्धारण किया गया जिसमें नेशनल सेंपल सर्वे (NSS) के उपभोग खर्च के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया | इसके अनुसार उस व्यक्ति (ग्रामीण एवं शहरी दोनों) को गरीब माना गया जो प्रतिदिन औसतन 2,250 कैलोरी भोजन प्राप्त करने में असमर्थ था | ये आंकड़ें वर्ष 1960-61 ई. पर आधारित थे |


➤  वाई के अलध समिति : वाई के अलध की अध्यक्षता में योजना आयोग ने 1979 में इस समिति का गठन किया | इस समिती ने दांडेकर एवं रथ के फॉर्मूले का आधार वर्ष बदलकर 1973-74 ई. पर दिया और पहली बार शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कैलोरी की अलग-अलग मात्रा निर्धारित की, जो क्रमश: 2,100 कैलोरी और 2,400 कैलोरी थी |


  लकड़वाला समिति : योजना आयोग ने देश में निर्धनता की माप के लिए 1989 ई. में प्रो. डी. टी. लकड़ावाला की अध्यक्षता में एक समिति गठित की | 1993 ई. में इस समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की | इसके अनुसार प्रत्येक राज्य में मूल्य स्तर के आधार पर अलग-अलग निर्धनता रेखा का निर्धारण किया गया यानी प्रत्येक राज्य की निर्धनता रेखा भिन्न-भिन्न होगी | इस प्रकार इसके अनुसार 35 गरीबी रेखाएं हैं जो शुरू में 28 थी | इस समिति ने प्रत्येक राज्य में ग्रामीण और शहरी निर्धनता के लिए अलग-अलग मूलकी सूचकांकों की बात की जो है -

(a) ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता रेखा : इस समिति ने कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI for Agricultural Labour) का सुझाव दिया |

(b) शहरी क्षेत्र में निर्धनता रेखा :  इसके लिए समिति ने औद्योगिक श्रमिको के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI for Industrial workers) और शहरी भिन्न कर्मचारिओं के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का सुझाव दिया l

इस समिति की सिफारिशों के परिणामस्वरूप कोई विशिष्ट या निर्धारित निर्धनता रेखा हुई जिनसे एक राष्ट्रीय निर्धनता रेखा का निर्धारण किया जा सका |


नोट : 8वीं योजन में कैलोरी प्राप्ति 2400 ग्रामीण व 2100 शहरी आधार को ही स्वीकार किया गया तथा 1973-74 ई. मूल्य पर ग्रामीण क्षेत्र के लिए 49.09 रुपया तथा शहरी क्षेत्र के लिए 56.64 रुपया प्रति व्यक्ति प्रतिमाह उपभोग व्यय लिया गया | इसी कार्य विधि का प्रयोग नवीं तथा 10वीं योजना में भी किया गया | 


सुरेश तेंदुलकर समिति : योजना आयोग ने वर्ष 2004 में सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में समिति बनाई जिसने अपनी रिपोर्ट 2009 में सौंपी | तेंदुलकर समिति का मुख्य उद्देश्य इसका परीक्ष्ण करना था कि क्या भारत में गरीबी वास्तव में गिर रही है या नहीं जैसा NSSO के 61वें चक्र से स्थापित होता है इसके साथ ही नई गरीबी रेखा तथा गरीबी के सम्बन्ध में अनुमान प्रस्तुत करना था |  तेंदुलकर समिति ने उपभोग बास्केट में परिवर्तन किये और जीने के लिए अदा की जाने वाली कीमत (Cost of living index – CoLI)  की बात की | इसने गरीबी रेखा का निर्धारण उपभोग में लाये जा रहे खाद्यानो के अलावा 6 बुनियादी आवश्यकताओं –  शिक्षा, स्वास्थय, बुनियादी संरचना, स्वच्छ वातावरण तथा महिलाओं की काम तथा लाभ तक पहुंच के आधार पर होगा |  तेंदुलकर समिति ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए एक ही उपभोग बास्केट का उपभोग किया | तेंदुलकर पद्धति के अनुस्सर गरीबी रेखा मिश्रित सन्दर्भ अवधि पर आधारित मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय के रूप में व्यक्त की गई है | समिति ने ग्रामीण क्षेत्र के लिए 2004-05 मूल्य पर 446.68 रुपया (2011-12 के मूल्य पर 816)  प्रति व्यक्ति प्रति माह तथा शहरी क्षेत्र के लिए इसे 578.80 रुपया (2011-12 के मूल्य पर 1000 रूपये) मासिक रुपया प्रति व्यक्ति उपभोग रखा | इस आधार पर समिति के अनुमान के अनुसार 2004-05 में ग्रामीण जनसंख्या का 41.8% (2011-12 में 25.7%) तथा शहरी जनसंख्या का 25.7% (2011-12 में 13.7%) गरीबी रेखा से नीचे थे | 2004-05 में सम्पूर्ण भारत के स्तर पर गरीबी का प्रतिशत 37.2% (2011-12 में 21.9% ) था |


नोट : तेंदुलकर समिति ने गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए जीवन निर्वाह लागत सूचकांक यानि प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय को आधार बनाया

➤ सी. रंगराजन समिति : संयुक्त राष्ट्रसंघ के अंग खाद्य एवं कृषि सन्गठन (FAO) गरीबी का आकलन उपभोग के पोषण मूल्य अर्थात् कैलोरी मूल्य के ही आधार पर करता है इसीलिए योजना आयोग ने तेंदुलकर समिति की जगह सी. रंगराजन की अध्यक्षता में 2012 में नई समिति गठित की जिसने अंपनी रिपोर्ट जुलाई 2014 में प्रस्तुत की | इसने तेंदुलकर समिति के आकलन के तरीकों को खारिज कर दिया | रंगराजन समिति के अनुसार वर्ष 2011-12 में 29.5% लोग गरीब थे (जबकि तेंदुलकर समिति ने ये अनुमान 21.9% दिया था) ग्रामीण जनसंख्या का 30.9% तथा शहरी जनसंख्या का 26.4% लोग गरीबी रेखा से नीचे थे |  रंगराजन समिति ने अखिल भारतीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्र के लिए 972 रूपये तथा शहरी क्षेत्र के लिए 1407 रुपया प्रतिव्यक्ति मासिक उपभोग व्यय को गरीबी रेखा के रूप में परिभाषित किया |  

निर्धनता के नवीनतम आंकड़े 

देश में निर्धनता रेखा से नीचे की जनसंख्या के सम्बन्ध में ताज़ा आंकड़े आयोग द्वारा जुलाई 2013 में जारी किये गये | राष्ट्रीय नमूना सन्गठन (NSSO) के 68वें दौर के सर्वेक्षण पर आधारित यह आकंडे 2011-12  के लिए है तथा सुरेश तेंदुलकर समिति द्वारा सुझाये गये फ़ॉर्मूला पर आधारित है इन आकड़ों के अनुसार ---

a) 2011-12 में देश में 21.9% जनसंख्या निर्धनता रेखा के नीचे है जबकि 2004-05 में यह 37.2% थी

b) 2011-12 में ग्रामीण क्षेत्रों में 25.7% व शहरी क्षेत्रों में 13.7% जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे है | वर्ष 2004-05 में यह आंकड़ा क्रमशः 41.8% एवं 25.7% था |

c) 2011-12 में देश में निर्धनों की कुल संख्या 26.93 करोड़ आकलित की गई | 2004-05 में यह 4072 करोड़ और 2009-10 में यह 35.47 करोड़ थी यानि दो वर्षों में 7.9% की कमी हुई |

d) 2011-12 में अखिल भारतीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में व्यय 816 रूपये प्रति माह स्वीकार किया गया है वही शहरी क्षेत्रों के लिए 1000 रूपये प्रति व्यक्ति प्रति माह माना गया है | इसका अर्थ यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन 27.20 रूपये व शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन 33.33 रूपये से कम खर्च करने वाले व्यक्तिओं को अखिल भारतीय स्तर पर निर्धनता रेखा से नीचे माना गया है |

e) राज्यों में सर्वाधिक निर्धनता अनुपात छत्तीसगढ़ में पाया गया है जहाँ 39.93% जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे है | इसके पश्चात् झारखंड में 36.96% मणिपुर में 36.89% अरुणाचल प्रदेश में 34.67% बिहार में 33.47% जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे है |

f) केन्द्रशासित प्रदेशों में निर्धनता रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले है (घटते क्रम में) – दादरा नगर हवेली (39.31 सर्वाधिक) चंडीगढ़ (21.81%) |

g) सबसे कम निर्धनता अनुपात गोवा में 5.09% पाया गया है | इसके बाद केरल (7.05%) , हिमाचल प्रदेश (8.06%) सिक्किम (8.19%) व पंजाब (8.26%) में पाया गया |