Class 10 – सामाजिक विज्ञान

इतिहास

Term-2

 Hindi Medium


अध्याय - 2 भारत में राष्ट्रवाद

 

प्रकरण (TOPIC)-1: 

प्रथम विश्वयुद्ध का प्रभाव, रिवलाफ़त और असहयोग आंदोलन 

तथा आंदोलन के भीतर अलग-अलग धाराएँ 

(The First World War, Khilafat and Non-Cooperation) 

 

त्वरित समीक्षा (Revision Notes) 

  • प्रथम विश्वयुद्ध से रक्षा व्यय में भारी इजाफा हुआ। इस खर्चे की भरपाई करने के लिए युद्ध के नाम पर कर्जे लिए गए और करों में वृद्धि की गई। सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया और आयकर शुरू किया गया। युद्ध के दौरान कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं। 1913 से 1918 के बीच कीमतें दो गुना हो चुकी थीं जिसके कारण आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गई थीं। गाँवों में सिपाहियों को जबरन भर्ती किया गया जिसके कारण ग्रामीण इलाकों में व्यापक गुस्सा था। 
  • देश के बहुत सारे हिस्सों में फसल खराब हो गई जिसके कारण खाद्य पदार्थों का भारी अभाव पैदा हो गया। उसी समय फ्लू की महामारी फैल गई। 1921 की जनगणना के मुताबिक दुर्भिक्ष और महामारी के कारण 120-130 लाख लोग मारे गए। 

 

सत्याग्रह का विचार (The Idea of Satyagraha): 

🔴 सत्याग्रह का विचार महात्मा गाँधी द्वारा दिया गया था, जिसकी शुरुआत उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के जन आंदोलन से की थी। सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर जोर दिया जाता था। इसका अर्थ यह था कि अगर आपका उद्देश्य सच्चा है, यदि आपका संघर्ष अन्याय के खिलाफ है तो उत्पीड़क से मुकाबला करने लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है। गाँधीजी का विश्वास था कि प्रतिशोध की भावना या आक्रामकता सहारा लिए बिना ही सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है।

 

🔴 गाँधी जी द्वारा चलाए गए कुछ सत्याग्रह आंदोलन -

(i) बागान व्यवस्था के खिलाफ चंपारण (बिहार) में 1916 में किसानों का आंदोलन। 

(ii) खेड़ा (गुजरात) में 1917 में किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह आंदोलन।

(iii) 1918 में गाँधी जी का अहमदाबाद में सूती कपड़ा कारखानों के मजदूरों के बीच सत्याग्रह आंदोलन। 

 

🔴 रॉलट एक्ट 1919 (The Rowlatt Act-1919) : रॉलट एक्ट कानून को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कांउसिल ने बहुत जल्दी में पास किया था। भारतीय सदस्यों में भारी विरोध के बावजूद इस कानून को पास किया गया था। इस कानून के जरिए सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रखने का अधिकार मिल गया था। 

 

🔴 6 अप्रैल, 1919 (On 6th April 1919) : रॉलट एक्ट के विरोध में गाँधी जी ने एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आंदोलन चलाने का फैसला लिया। इसकी शुरुआत 6 अप्रैल को एक हड़ताल से शुरू होनी थी। विभिन्न शहरों में रैली-जुलूसों का आयोजन किया गया। रेलवे वर्कशॉप्स में कामगार हड़ताल पर चले गए। दुकानें बंद हो गईं। इस व्यापक जन-उभार से चिंतित तथा रेलवे टेलीग्राफ जैसी संचार सुविधाओं के भंग हो जाने की आशंका से भयभीत अंग्रेजों ने राष्ट्रवादियों पर दमन शुरू कर दिया। बहुत सारे स्थानीय नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। गाँधीजी के दिल्ली में प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी गई। 

 

🔴 जलियाँवाला बाग (Jallianwalla Bagh) : 10 अप्रैल, 1919 को पुलिस ने अमृतसर में एक शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली चला दी। इसके बाद लोग बैंकों, डाकखानों और रेलवे स्टेशनों पर हमले करने लगे। मार्शल लॉ लागू कर दिया और जनरल डायर ने कमान संभाल ली। 13 अप्रैल को जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ। उस दिन अमृतसर में बहुत सारे गाँव वाले बैशाखी के मेले में शिरकत करने के लिए जलियाँवाला बाग मैदान में जमा हुए थे। यह मैदान चारों तरफ से बंद था। शहर से बाहर होने के कारण वहाँ जुटे लोगों को यह पता नहीं था कि इलाके में मार्शल लॉ लागू किया जा चुका है। जनरल डायर हथियारबंद सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचा और जाते ही उसने बाहर निकलने के सारे रास्तों को बंद कर दिया। इसके बाद उसके सिपाहियों ने भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चला दीं। सैकड़ों लोग मारे गए। जैसे-जैसे जलियाँवाला बाग की खबर फैली, उत्तर भारत के बहुत सारे शहरों में लोग सड़कों पर उतरने लगे। हड़तालें होने लगी लोग पुलिस से मोर्चा लेने लगे और सरकारी इमारतों पर हमला करने लगे। सरकार ने इन कार्यवाहियों को निर्ममता से कुचलने का रास्ता

अपनाया। हिंसा फैलते देख महात्मा गाँधी ने आंदोलन वापस ले लिया। 

 

🔴 खिलाफत आंदोलन (Khilafat Movement) : महात्मा गाँधी पूरे भारत में और भी ज्यादा जनाधार वाला आंदोलन खड़ा करना चाहते थे। लेकिन उनका मानना था कि हिंदू-मुसलमानों को एक-दूसरे के नजदीक लाए बिना ऐसा कोई आंदोलन नहीं चलाया जा सकता। उन्हें लगता था कि खिलाफत का मुद्दा उठाकर वे दोनों समुदायों को नजदीक ला सकते हैं। पहले विश्वयुद्ध में ऑटोमन तुर्की की हार हो चुकी थी। इस आशय की अफवाह फैली हुई थी कि इस्लामिक विश्व के आध्यात्मिक नेता (खलीफा) ऑटोमन सम्राट पर एक बहुत सख्त शांति संधि थोपी जाएगी। खलीफा की तात्कालिक शक्तियों की रक्षा के लिए मार्च 1919 में बंबई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया था। मोहम्मद अली और शौकत अली इस समिति के नेता थे। अली बंधुओं के साथ-साथ कई युवा मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जनकार्रवाई की संभावना तलाशने के लिए महात्मा गाँधी के साथ चर्चा शुरू कर दी थी। सितम्बर 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गाँधी ने भी दूसरे नेताओं को इस बात पर राजी कर लिया कि खिलाफत आंदोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आंदोलन शुरू किया जाना चाहिए। 

 

🔴 असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) : अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'हिंद स्वराज' (1909) में महात्मा गाँधी ने कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था और यह शासन इसी सहयोग के कारण चल पा रहा है। अगर भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो साल भर के भीतर ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज की स्थापना हो जाएगी। गाँधीजी का विश्वास था कि यदि भारतीय सहयोग देना वापस ले लें, तो ब्रिटिश शासकों के पास भारत छोड़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होगा। 

 

🔴 असहयोग आंदोलन के कुछ प्रस्ताव (Some of Proposals of Non-Cooperation Movement):

(i) ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई उपाधियों को वापस कर दिया गया। 

(ii) नागारिक सेवा, सेना, पुलिस, अदालत, विधायी परिषद और स्कूल आदि का बहिष्कार किया गया। 

(iii) विदेशी पुस्तकों का बहिष्कार किया गया।

(iv) यदि सरकार दबाव बनाती है, तो पूर्ण सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया जाए। 


🔴 आंदोलन के भीतर अलग-अलग धाराएँ (Differing Strands Within the Movement) : असहयोग खिलाफत आंदोलन जनवरी, 1921 में शुरू हुआ। विभिन्न सामाजिक समूहों ने इसमें हिस्सा लिया लेकिन प्रत्येक की अपनी-अपनी आकांक्षाएँ थीं। सभी ने स्वराज के आह्वान को स्वीकार किया लेकिन उनके लिए उसके अर्थ अलग-अलग थे।

 

🔴 अवध (Awadh) : अवध में संन्यासी बाबा रामचन्द किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। बाबा रामचन्द इससे पहले फिजी में गिरमिटिया मजदूर के तौर पर काम कर चुके थे। उनका आंदोलन तालुकदारों और जमीदारों के खिलाफ था जो किसानों से भारी-भरकम लगान और तरह-तरह के कर वसूल रहे थे। किसानों की माँग थी कि लगान कम किया जाए, बेगार खत्म हो और दमनकारी जमीदारों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए। 

 

🔴 आदिवासी किसान: आदिवासी किसानों ने महात्मा गाँधी के संदेश और स्वराज के विचार का कुछ और ही मतलब निकाला। अन्य वन क्षेत्रों की तरह आन्ध्र प्रदेश की गूडेम पहाड़ियों पर भी अंग्रेजी सरकार ने बड़े-बड़े जंगलों में लोगों के दाखिल होने पर पाबंदी लगा दी थी। लोग इन जंगलों में तो मवेशियों को चरा सकते थे ही जलावन के लिए लड़की और फल बीन सकते थ। वनों के नए कानून से केवल उनकी रोटी-रोजी पर असर पड़ रहा था बल्कि उन्हें लगता था कि उनके परंपरागत अधिकार भी छीने जा रहे हैं। जब ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सड़कों के निर्माण के लिए बेगार करने पर मजबूर किया तो लोगों ने बगावत कर दी। 

आदिवासी क्षेत्र के अनेक आदिवासियों ने असहयोग आंदोलन चलाया और गुरिल्ला युद्ध चलाते रहे। 

 

🔴 बागानों में स्वराज (Swaraj In the Plantations) : 1859 के इनलैंड इमिग्रेशन एक्ट के तहत बागानों में काम करने वाले मजदूरों गान से बाहर जाने की छूट नहीं होती थी और यह इजाजत विरले ही उन्हें कभी मिलती थी। जब उन्होंने असहयोग आंदोलन के बारे में सुना तो हजारों मजदूर अपने अधिकारियों की अवहेलना करने लगे। उन्होंने बागान छोड़ दिए और अपने घर को चल दिए। लेकिन वे अपनी मंजिल तक नहीं पहुँच पाए। रेलवे और स्टीमरों की हड़ताल के कारण वे रास्ते में ही फंसे रह गए। उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और उनकी बुरी तरह पिटाई की।

 

 

इनके बारे में जानें- (Know the Terms)

1. राष्ट्रवाद (Nationalism) : अपने देश के लिए सम्मान गर्व की भावना रखना। 

2. सत्याग्रह (Satyagrah) : जन आंदोलन का ऐसा तरीका जिसमें सत्य की शक्ति पर आग्रह खोज पर जोर दिया जाता है। महात्मा गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका में इस जन आंदोलन से वहाँ की नस्लभेदी सरकार से लोहा लिया था। 

3. खलीफा (Khalifa) : इस्लामिक विश्व के आध्यात्मिक प्रमुख (नेता, गुरु, खलीफा) 

4. बेगार (Begar) : बिना किसी पारिश्रमिक के काम कराना। 

5. जबरन भर्ती (Forced Recruitment) : इस प्रक्रिया में ब्रिटिश शासक (अंग्रेज़) भारत के लोगों को जबरदस्ती सेना में भर्ती कर लेते थे। 

6. रॉलट एक्ट (Rowlatt Act) : इस कानून के जरिए सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रखने का अधिकार मिल गया था। 

7. जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड (Jallianwala Bagh Massacre) : 10 अप्रैल, 1919 को बैशाखी मेले में शामिल होने के लिए बहुत सारे लोग अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एकत्रित हुए थे। जनरल डायर ने वहाँ पहुँचकर बाहर निकलने के सभी रास्तों को बंद करा दिया और उसने भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चलवा दी, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। 

8. असहयोग खिलाफत आंदोलन (Non-Cooperation Movement) : असहयोग खिलाफत आंदोलन जनवरी, 1921 में शुरू हुआ। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य यह था कि ब्रिटेन में बने उत्पादों के लिए सहयोग प्रदान नहीं करना है। इसमें सरकारी पदवियों को वापस करना, सरकारी नौकरियों का बहिष्कार, सेना, पुलिस, अदालत, विधायी परिषद, स्कूलों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा पूर्ण रूप से सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया गया। 

9. स्वदेशी (Swadeshi): स्वदेशी आंदोलन मुख्य रूप से ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार करना तथा देश में बनी वस्तुओं देशी तकनीक को पुनर्जीवित करना। 

10. बहिष्कार (Boycott) : किसी के साथ संपर्क रखने और जुड़ने से इनकार करना या गतिविधियों में हिस्सेदारी, चीज़ों की खरीद इस्तेमाल से इनकार करना। आमतौर पर विरोध का यह एक रूप होता है। 

11. पिकेट (Picket) : प्रदर्शन या विरोध का ऐसा स्वरूप जिसमें लोग किसी दुकान, फैक्ट्री या दफ्तर के भीतर जाने का रास्ता रोक लेते हैं।

 

 

महत्वपूर्ण तिथियाँ (Know the Dates) :

1885 : बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अधिवेशन। 

1905 : बंगाल का विभाजन औपचारिक रूप से अस्तित्व में आया। 

1906 : मुस्लिम लीग की स्थापना।

1913-1918 : युद्ध से कीमतों में दो गुना तक की वृद्धि।

1914-1918 : प्रथम विश्वयुद्ध। 

1917 : महात्मा गाँधी द्वारा गुजरात के खेड़ा जिले में सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत। 

1919 : रॉलट एक्ट के पारित हो जाने से इस कानून के जरिए सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में रखने का अधिकार मिल गया था। 

10 अप्रैल, 1919 : पुलिस ने अमृतसर में एक शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली चला दी। मॉर्शल लॉ लागू कर दिया गया। 

1918-1919 तथा 1920-1921 : देश के बहुत सारे हिस्सों में फसल खराब हो गई। 

मार्च, 1919 : बम्बई में खिलाफत कमेटी का गठन। 

13 अप्रैल, 1919 : जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड। 

सितम्बर, 1920 : कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में यह तय किया गया कि असहयोग आंदोलन को खिलाफ और स्वराज के पक्ष में चलाया जाए। 

दिसम्बर, 1920 : एक समझौते के तहत असहयोग कार्यक्रम पर स्वीकृति की मोहर लगा दी गई कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में।

 

 

प्रकरण (TOPIC)-2: 

नागरिक अवज्ञा आंदोलन (सविनय अवज्ञा) की ओर 1930-1934 

(Towards Civil Disobedience)

 

साइमन कमीशन (Simon Commission) : 

🔴 ब्रिटेन की नई टोरी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक वैधानिक आयोग का गठन कर दिया। इस आयोग को भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन करना था और उसके बारे में सुझाव देने थे। इस आयोग के सभी सदस्य अंग्रेज़ थे कोई भी सदस्य भारतीय नहीं था इसलिए भारतीय नेताओं ने इस आयोग का विरोध किया था। 

🔴 साइमन कमीशन भारत में 1928 में पहुँचा। इसका स्वागतसाइमन कमीशन वापस जाओ" (साइमन कमीशन गो बैक) के नारों से किया गया। कांग्रेस, मुस्लिम लीग, सभी पार्टियों ने प्रदर्शन में भाग लिया। इस विरोध को शांत करने के लिए वायसराय लॉर्ड इरविन ने अक्टूबर 1929 में भारत के लिए "डोमीनियन स्टेटस" का गोलमोल सा ऐलान कर दिया। उन्होंने इस बारे में कोई समय सीमा भी नहीं बताई। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि भावी संविधान के बारे में चर्चा करने के लिए गोलमेज सम्मेलन आयोजन किया जाएगा। 

 

नमक यात्रा और सविनय अवज्ञा आंदोलन : शुरुआत (Salt March and Civil Disobedience Movement : Beginning): 

🔴 देश को एकजुट करने के लिए महात्मा गाँधी को नमक एक शक्तिशाली प्रतीक दिखाई दिया। अधिकतर लोगों जिनमें ब्रिटिश लोग भी शामिल थे ने महात्मा गाँधीजी के इस विचार का मजाक बनाया। महात्मा गाँधी ने वायसराय इरविन को एक खत लिखा। इस खत में उन्होंने 11 माँगों का उल्लेख किया था। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण माँग नमक कर को खत्म करने की थी। 

🔴 साल्ट मार्च अथवा दांडी मार्च की शुरुआत गाँधीजी द्वारा 12 मार्च, 1930 को की गई थी। गाँधीजी ने अपने 78 विश्वस्त स्वयंसेवकों के साथ नमक यात्रा शुरू कर दी। साबरमती से लेकर दांडी तक की 240 मील की दूरी को गाँधीजी ने 24 दिनों में पूरा किया बहुत सारे लोग रास्ते में उनके साथ जुड़ गए। 6 अप्रैल, 1930 को गाँधीजी दांडी पहुँचे और उन्होंने समुद्र का पानी उबालकर नमक बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था। 

🔴 नमक यात्रा सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत का प्रतीक थी। हजारों लोगों ने देश के विभिन्न हिस्सों में नमक कानून को तोड़ा। लोगों ने सरकारी नमक कारखानों के सामने प्रदर्शन किए। आंदोलन फैला तो विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया जाने लगा। किसानों ने लगान चुकाने से इनकार कर दिया। गाँवों में तैनात कर्मचारी इस्तीफे देने लगे। जंगलों में रहने वाले आदिवासी वन कानूनों का उल्लंघन करने लगे। 

 

ब्रिटिश शासकों की प्रतिक्रिया (Response of British Rulers) : 

🔴 घटनाओं से चिंतित औपनिवेशिक सरकार कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार करने लगी। बहुत सारे स्थानों पर हिंसक टकराव हुए। एक महीने भर बाद महात्मा गाँधी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद गुस्साए लोगों ने अंग्रेजी शासन के प्रतीकों, पुलिस चौकियों, नगरपालिका भवनों, अदालतों और रेलवे स्टेशनों पर हमले शुरू कर दिए। भयभीत सरकार ने निर्मम दमन का रास्ता अपनाया। शांतिपूर्ण सत्याग्रहियों पर हमले किए गए, औरतों बच्चों को मारा-पीटा गया और लगभग एक लाख लोग गिरफ्तार किए गए।

 

गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conference) :

स्थितियों में एक बार फिर से बदलाव आया और महात्मा गाँधी ने आंदोलन को वापस ले लिया। 5 मार्च, 1931 को उन्होंने इरविन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। यह गाँधी इरविन समझौता कहलाया। इस समझौते के जरिए गाँधीजी ने लंदन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने पर अपनी सहमति व्यक्त कर दी। इसके बदले सरकार राजनैतिक कैदियों को रिहा करने पर राजी हो गई। दिसम्बर 1931 में सम्मेलन के लिए गाँधीजी लंदन गए। यह वार्ता बीच में ही टूट गई गाँधीजी को निराश वापस लौटना पड़ा। जब गाँधीजी वापस भारत आए तो उन्होंने पाया कि अधिकतर नेता जेल में बंद हैं। कांग्रेस को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया था। सभाओं, प्रदर्शनों और बहिष्कार जैसी गतिविधियों को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जा रहे थे। महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन दोबारा शुरू कर दिया। सालभर आंदोलन चला लेकिन 1934 तक आते-आते उसकी गति मंद पड़ने लगी। 

 

 

इनके बारे में जानें- (Know the Terms)

1. सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience) : सविनय अवज्ञा आंदोलन के अन्तर्गत लोगों को केवल अंग्रेजों का सहयोग करने के लिए बल्कि औपनिवेशिक कानूनों का उल्लंघन करने के लिए आह्वान किया जाने लगा।

2. स्वराज (Swaraj) : 'स्वराज' का अर्थ स्वतंत्रता अथवा अपना शासन है। 1920 में 'स्वराज' का अर्थ "स्वयं की सरकार" से था। सभी लोगों ने स्वराज का अर्थ अपने-अपने तरीके से लगाया था। 

3. साइमन कमीशन (Simon Commission) : ब्रिटेन की नयी टोरी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक वैधानिक आयोग का गठन कर दिया। इस आयोग को भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन करना था और उसके बारे में सुझाव देने थे। 1928 में यह आयोग भारत आया। 

4. नमक कानून (Salt Law): नमक एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जिसका सम्पूर्ण विश्व में उपयोग किया जाता है तथा गरीब और अमीर दोनों ही इसका उपयोग करते हैं। भारत में नमक के उत्पादन पर ब्रिटिश सरकार ने एकाधिकार की नीति अपना रखी थी। सरकार ने नमक पर एक कर लगा रखा था जो अमीर-गरीब दोनों पर था बल्कि गरीबों पर विशेष रूप से था। गाँधीजी ने सोचा कि ब्रिटिश सरकार का यह कानून गैर कानूनी है जिसका विरोध किया जाना चाहिए इसके लिए उन्होंने 'नमक कानून' का उल्लंघन किया। 

5. गाँधी-इरविन समझौता (Gandhi Irwin Pact) : जब ब्रिटिश सरकार ने सविनय अवज्ञा आंदोलनकारियों के विरुद्ध निर्मम दमनकारी रास्ता अपनाया, तब गाँधीजी ने आंदोलन वापस करने का निर्णय लिया। गाँधीजी ने इरविन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए, इस समझौते के अनुसार गाँधीजी गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन गए। 

 

 

महत्वपूर्ण तिथियाँ (Know the Dates) :

1920 : अवध में किसानों का संघर्ष चल रहा था, लेकिन कांग्रेस नेता इससे खुश नहीं थे।

1921 : आन्ध्र प्रदेश की गूडेम पहाड़ियों में उग्र गुरिल्ला आंदोलन फैल गया। आंदोलन की शुरुआत अल्लूरी सीताराम राजू ने की थी। 

1921-22 : विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाने लगी। जून 1920 में जवाहरलाल नेहरू ने अवध के गाँवों का दौरा किया। 

फरवरी, 1922 : महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय लिया। मोतीलाल नेहरू और सी. आर. दास द्वारा स्वराज पार्टी का गठन किया गया। 

1924 : राजू पकड़ा गया और फाँसी की सजा दी गई। 

1927 : भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ (FICCI) का गठन किया गया। 

1928 : साइमन कमीशन भारत आया। 

1928 : हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) का गठन किया। 

अक्टूबर, 1929 : भारत के लिएडोमीनियन स्टेटस" का ऐलान लार्ड इरविन ने किया। 

अक्टूबर, 1929 : जवाहरलाल नेहरू, बाबा रामचन्द्र अन्य नेताओं के नेतृत्व में अवध किसान सभा का गठन कर लिया गया। 

दिसम्बर, 1929 : कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की माँग की गई। 

26 जनवरी, 1930 : स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया। 

31 जनवरी 1930 : गाँधीजी ने वायसराय इरविन को 11 माँगों का एक पत्र भेजा। 

अप्रैल, 1930 : अब्दुल गफ्फार खान को गिरफ्तार कर लिया गया। 

6 अप्रैल, 1930 : नमक यात्रा में गाँधीजी दांडी पहुँचे, गाँधीजी ने नमक कानून को तोड़ा।

1930 : सविनय अवज्ञा आंदोलन जारी, नमक सत्याग्रह, गाँधीजी का दांडी मार्च, प्रथम गोलमेज सम्मेलन

5 मार्च, 1930 : गाँधीजी इरविन समझौते पर हस्ताक्षर। 

दिसम्बर, 1931 : गाँधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के लिए रवाना। 

1931 : द्वितीय गोलमेज सम्मेलन गाँधी इरविन समझौता, भारत की जनगणना। 

1932 : कांग्रेस आंदोलन का सुपरसैशन, तृतीय गोलमेज सम्मेलन। 

सितम्बर, 1932 : गाँधीजी और अंबेडकर के बीच पूना समझौता। 

1934 : सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस। 

1935 : भारत सरकार अधिनियम प्राप्त टायल एसेंट।

 

 

प्रकरण (TOPIC)-3 

सामूहिक अपनेपन का भाव

(The Sense of Collective Belonging) 

 

किसान (Farmers) : किसानों के लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के खिलाफ लड़ाई थी। जब 1931 में लगानों के कम हुए बिना आंदोलन वापस ले लिया गया तब किसानों को बडी निराशा हई। फलस्वरूप जब 1932 में आंदोलन दबारा शरू हआ तो उनमें से बहुत से किसानों ने आंदोलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। गरीब किसान केवल लगान में ही कमी नहीं चाहते थे। वे चाहते थे कि उन्हें जमींदारों को जो भाड़ा चुकाना था उसे माफ कर दिया जाए। इसके लिए उन्होंने कई रेडिकल आंदोलनों में हिस्सा लिया जिनका नेतृत्व अकसर समाजवादियों और कम्यूनिस्टों के हाथ में होता था। अमीर किसानों और जमीदारों के भय से कांग्रेस "भाड़ा विरोधी" आंदोलनों को समर्थन देने में प्रायः हिचकिचाती थी। इसी कारण गरीब किसानों और कांग्रेस के बीच संबंध अनिश्चित बने रहे। 

व्यापारी वर्ग (Businessman) : प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारतीय व्यापारियों और उद्योगपतियों ने भारी मुनाफा कमाया था और वे ताकतवर हो चुके थे। अपने कारोबार को फैलाने के लिए उन्होंने ऐसी औपनिवेशिक नीतियों का विरोध किया जिनके कारण उनकी व्यावसायिक गतिविधियों में रुकावट आती थी। वे विदेशी वस्तुओं के आयात से सुरक्षा चाहते थे और रुपया-स्टर्लिंग विदेशी विनिमय अनुपात में बदलाव चाहते थे जिससे आयात में कमी जाए। 1920 में भारतीय औद्योगिक एवं व्यावसायिक कांग्रेस और 1927 में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ (फिक्की) का गठन किया गया। ज्यादातर व्यवसायी स्वराज को एक ऐसे युग के रूप में देखते थे जहाँ कारोबार पर औपनिवेशिक पाबंदियाँ नहीं होंगी और व्यापार उद्योग निर्बाध ढंग से फल-फूल सकेंगे। उन्हें उग्र गतिविधियों का भय था। वे लंबी अशांति की आशंका और कांग्रेस के युवा सदस्यों में समाजवाद के बढ़ते प्रभाव से डरे हुए थे। 

औद्योगिक श्रमिक (Industrial Workers) : औद्योगिक श्रमिकों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन से दूरी बना ली थी। जैसे-जैसे उद्योगपति कांग्रेस के नजदीक रहे थे, मजदूर कांग्रेस से छिटकने लगे थे। फिर भी कुछ मजदूरों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया। कांग्रेस अपने कार्यक्रम में मजदूरों की माँगों को समाहित करने में हिचकिचा रही थी। कांग्रेस को लगता था कि इससे उद्योगपति दूर चले जाएँगे। 

औरतों की भागीदारी (Women's Participation) : सिविल नाफरमानी (सविनय अवज्ञा) आंदोलन में औरतों ने बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया। शहरी इलाकों में ज्यादातर ऊँची जातियों की महिलाएँ सक्रिय थीं जबकि ग्रामीण इलाकों में सम्पन्न किसान परिवारों की महिलाएँ आंदोलन में हिस्सा ले रही थीं। लंबे समय तक कांग्रेस संगठन में किसी भी महत्वपूर्ण पद पर औरतों को जगह देने से हिचकिचाती रही। कांग्रेस को महिलाओं की प्रतीकात्मक उपस्थिति में ही दिलचस्पी थी।

 

 

इनके बारे में जानें- (Know the Terms)

1. रीति रिवाज (Folklores) : पारम्परिक विश्वास, रीति रिवाज और कहानियाँ समुदाय में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में मौखिक रूप से जाती हैं। अनेक राष्ट्रवादी नेताओं ने लोक कथाओं गाथाओं से राष्ट्रवाद का विचार लिया। ऐसा विश्वास है कि पुराने रीतिरिवाज हमें पुरानी परम्परा और संस्कृति की सही तस्वीर दिखाते हैं।

2. इतिहास की पुर्नव्याख्या (Reinterpretation of History) : बहुत सारे भारतीयों का मानना था कि ब्रिटिश सरकार ने भारतीय इतिहास को विभिन्न तरीकों से बदलकर प्रस्तुत किया। इसके जवाब में भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों की खोज में अतीत की ओर देखने लगे। उन्होंने उस गौरवमयी प्राचीन युग के बारे में लिखना शुरू किया जब कला और वास्तु शिल्प, विज्ञान और गणित, धर्म और संस्कृति, कानून और दर्शन, हस्तकला और व्यापार सभी फल-फूल रहे थे। 

 

 

महत्वपूर्ण तिथियाँ (Know the Dates) :

1930 : डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने दलित वर्ग का गठन किया। 

1937 : प्रान्तीय विधायिका के चुनाव सम्पन्न हुए। 

1939 : द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत।